Thursday, October 20, 2011

वास्तव में मेरे जीवन का अन्त उसी समय हो गया था,जब मैंने गाँधी पर गोली चलाई थी |उसके पश्चात मानो मै समाधि में हू और अनासक्त जीवन बिता रहा हू | मै मानता हू की गाँधी जी ने देश के लिए बहुत कष्ठ उठाए,जिनके कारण मै उनकी सेवा के प्रति एवं उनके प्रति नतमस्तक हू,किन्तु देश के इस सेवक को भी जनता को धोखा देकर मातृभूमि के विभाजन का अधिकार नहीं था | मै किसी प्रकार की दया नहीं चाहता हू | मै यह भी नहीं चाहता हू की मेरी ओर से कोई दया की याचना करे | अपने देश के प्रति भक्ति- भाव रखना अगर पाप है तो मै स्वीकार करता हू कि मैंने किया है | यदि वह पुण्य है तो उसके जनित पुण्य-पद पर मेरा नम्र अधिकार है| मेरा विश्वास अडिग है कि मेरा कार्य नीति की दृषि्ट से पु्णॅतया उचित है | मुझे इस बात में लेशमात्र भी सन्देश नहीं है कि भविष्य में किसी समय सच्चे इतिहासकार लिखेंगे तो मेरे कार्य को उचित ठहराएंगे |--- [नाथूराम गोडसे]

Monday, October 3, 2011

Walking alone,
With my thoughts
Searching my Dreams which I lost,
Searching at every step
And every face,
Walking, walking or running,
To leave behind every pain,
A pain which come anonymously,
And invade in my loneliness.....