एक रूह से हुई
एक पवित्र और सच्ची रूह से
मैंने देखा उसको तड़फते हुये
और भटकते हुये ।
मैंने महसूस किया
उसकी धड़कन को,
मैंने पूछा-
"क्या मैं ही तुम्हें देख सकता हूँ?"
उसने कहा- "हाँ सिर्फ तुम ही-
मुझे सुन सकते हो,
देख सकते हो
और महसूस कर सकते हो"
मैंने पूछा-
"लेकिन तुमने शरीर क्यों छोड़ा?
वो तड़फ उठी,
उसकी आँखों से नफ़रत बरसने लगी,
मैं सहम गया !
वो मेरे करीब आकर बैठ गयी
और बोली-
"मुझे नफ़रत है उस दुनिया से
जिसमें जीवन शरीर से चलता है
उस दुनिया में बस छल है
कपट है, फरेब है।
मैंने भी फ़रेब खाया है
उस दुनिया से
तो छोड़ दिया शरीर
उसी संसार में
और ये देखो-
ये है रूहों का संसार
ये बहुत अच्छा है तुम्हारी दुनिया से।"
मैं अपलक उसको देखता रहा
बरबस मेरी आँखे छलक पड़ीं
क्योंकि-
मैंने भी खाया था धोखा
उसी दुनिया से।
हम दोनों की एक ही कहानी थी,
तभी शायद मैं उसको
सुन सकता था, और महसूस कर सकता था।
मैं गहरे सोच में डूब गया
रूह मेरे अन्तर्मन को पढ़ चुकी थी
क्योंकि वो रूह थी
एक सच्ची और पवित्र रूह
उसने आगे बढ़कर
मेरी ओर हाथ बढ़ाया
मैं भी इन्कार न कर सका
अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया
और अचानक
मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी
और मैं
पहाड़ी से नीचे गिरा
मैंने देखा था अपना शरीर
गहरी खाई में,
निर्ज़ीव शरीर
और मैं उस रूह के साथ
उड़ता चला गया
एक खूबसूरत दुनिया में
जहाँ छल, कपट
और फरेब नहीं होता।
Sunday, March 7, 2010
कल मेरी मुलाकात
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
sundar rachna..
ReplyDeletelikhte rahiye
blog ke dunia me sawagat hay.